Wednesday, April 4, 2012

ये वक़्त क्या है?




ये वक़्त क्या है ?

ये क्या है आख़िर की जो
मुसलसल (continuous) गुजर रहा है
ये जब न गुजरा था,
तब कहा था?
कही तो होगा...
गुजर गया है
तो अब कहा है
कही तो होगा
कहा से आया किधर गया है
ये कब से कब तक का सिलसिला है
ये वक़्त क्या है?
ये वाक़ये,
हादसे
तसादुम (battle/collision?), हर एक गम
और हर एक मसर्रत (happiness)
हर एक अजीयत (pain)
हर एक लज्जत
हर एक तब्बस्सुम (smile)
हर एक आंसू, हर एक नगमा
हर एक खुशबू
वो ज़ख्म का दर्द हो
कि वो लम्स (touch) का जादू
ख़ुद अपनी आवाज़ हो
कि माहौल की सदाए
ये जहन मे बनती और
बिगड़ती हुयी फिज़ायेँ
वो फिक्र मी आए ज़लज़ले (earthquake) हो
कि दिल की हलचल
तमाम अहसास, सारे जज्बे
ये जैसे पत्ते है
बहते पानी की सतह पर
जैसे तैरते है
अभी यहा है, अभी वहां है
और अब है ओझल
दिखाई देते ! ... नही है लेकिन
ये कुछ तो है
जो कि बह रहा है
ये कैसा दरिया है
किन पहाडोँ से आ रहा है
ये किस समंदर को जा रहा है
ये वक़्त क्या है ?
कभी कभी मैं ये सोचता हूं
कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो
तो ऐसा लगता है
दूसरी सम्त (डायरेक्शन) जा रहे है
मगर हकीक़त में
पेड़ अपनी जगह खड़े है
तो क्या ये मुमकिन है
सारी सदियाँ
कतार अंदर कतार
अपनी जगह खड़ी हो
ये वक़्त साकित (still) हो
और हम ही गुजर रहे हो !
इस एक लम्हें में सारे लम्हें
तमाम सदिया छुपी हूई हों
न कोई आइंदा (future)
न गुजिश्तां (Past)
जो हो चुका है
वो हो रहा है
जो होनेवाला है
हो रहा है
मैं सोचता हूँ
कि ये क्या मुमकिन है
सच ये हो
की सफर मे हम हैं
गुजरते हम हैं
जिसे समझते है हम गुज़रता है
वो थमा है
गुज़रता है या थमा हुआ है
इकाई है या बँटा हुआ है
हे मुन्जमिद (Frozen)
या पिघल रहा है
किसे ख़बर है, किसे पता है
ये वक़्त क्या है ?

- जावेद अख्तर से साभार