Tuesday, July 10, 2012

तुमसे खुबशुरत .. तो मुहब्बत अपनी..

वो तो हर से-येआयाम पीला जाता था..
उससे तो बेहद खुस थी मल्कियत आपनी..
वो तो हर रात चला आता था..
उससे कही अच्छी थी बेगरत अपनी..
वो कही है तो दिखाई नहीं देता..
उससे तो अच्छी थी गुलामी अपनी..
ना खुदा था तो क्या होना था..
उससे तो बेहतर थी बेगानी अपनी..
वो नहीं था तो कोई और होता..
उसकी चाहत ने दुबै दी खुद की कश्ती अपनी..
अब ना रोयें तो , चाहें किसे ?
जिसने सरे राह लूट ली इज्ज़त अपनी..
वो ना था तो खुदा था..
किसने मांगी थी .. ग़ुरबत अपनी..
-रवि सिंह..

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