Friday, July 13, 2012

कहाँ सच बोलें?


की वो मुसलसल झूठ बोलेंतो ना सच का मुजायरा
की किशन था रोका उनको.. तो कहीं ना सचा का
 मुजायरा होता..
 तो अब ये तय कर लें..
 और फ़िक्र भी.. ये डी होता..
तो अब ये तय कर लें.. और फिक्र भी की ना हॉट
तो क्या मुजायरा होता..
हमनें हुकिमिनी की फिक्र भी नहीं..
और सोचते फिरते हैं इलाज..
ना ये दर्द हटा ना हाकिम होता ना तो खुका की फिक्र होती..

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