Thursday, May 24, 2012

बेरोजगार आशियाना कहाँ है!

एक पेड़ पे कतार बैठा गिद्धों ने पूछा भाई
तुझे जाना कहाँ है?
कंकरों के धुंध को हटा के कहा.....
बता खाना कहाँ है!

ना पत्ते पड़े ना मंजर लगे, बस आम हो गए
चुप रह गए भुनभुनाते, सबके गुलाम हो गए?
सब लोग बतलाते हैं अलग अलग घर का पता
हम सोच मैं पड़ गए की जाना कहाँ है?

'तुम आगे बढ़ो हम साथ हैं' का नारा रट लिए
बेफिक्र आश्की के मौशकी मैं डूबे रहे
एक-बतन थे, एक-जहाँ हैं, कुफ्र के मालिक भी हम
फिरते रहिये कहते हुए बेरोजगार आशियाना कहाँ है!

--रवि सिंह

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